हर्फ़-ए-ग़ज़ल से रंग-ए-तमन्ना भी छीन ले मैं जल रहा हूँ आतिश-ए-नग़्मा भी छीन ले बे-बर्ग-ओ-बार हो गया इमरोज़ का शजर मुझ से मता-ए-गुलशन-ए-फ़र्दा भी छीन ले मेरे जुनूँ को हाजत-ए-दीवार-ओ-दर नहीं घर से जुदा हुआ हूँ तो साया भी छीन ले अब तो नशात-ए-दीद का भी सिलसिला गया या'नी दिल-ओ-निगाह का रिश्ता भी छीन ले छीना है तू ने शाम के रुख़ से सलोना-पन अब शहर-ए-आरज़ू से उजाला भी छीन ले बाक़ी रहे न दस्त-ए-तसर्रुफ़ में कोई शय जो कुछ मुझे दिया था वो हिस्सा भी छीन ले