जितने अच्छे लोग हैं वो मुझ से वाबस्ता रहे मेरे सारे बोल उन के लब से पैवस्ता रहे सब परिंदे ला रहे हैं आसमानों से ख़बर मेरे घर आँगन में आ कर कब वो पर-बस्ता रहे वो तरीक़-ए-ख़ौफ़-ओ-दहशत पर अमल-पैरा सही मैं ये कहता हूँ कि क़त्ल-ओ-ख़ूँ भी शाइस्ता रहे बावजूद-ए-हम-नशीनी उस से कुछ पाया न फ़ैज़ दिल भी आज़ुर्दा रहा हालात भी ख़स्ता रहे कम से कम बाक़ी रहे सब के दिलों में रस्म-ओ-राह ये मुनासिब है घरों के दरमियाँ रस्ता रहे सरहद-ए-इम्काँ से आगे थीं यही तारीकियाँ क्या ज़रूरी है अँधेरा हर जगह डसता रहे उम्र-भर करते रहे 'अलमास' मिलने से गुरेज़ कीजिए तहक़ीक़ क्यूँ वो राज़ सर-बस्ता रहे