हर-गाम तजरबात के पहलू बदल गए लोगों को आज़मा के हम आगे निकल गए हम को तो एक लम्हा ख़ुशी का न मिल सका क्या लोग थे जो ज़ीस्त के साँचे में ढल गए क्या क्या तग़य्युरात ने दुनिया दिखाई है महसूस ये हुआ कि बस अब के सँभल गए हम ज़िंदगी की जेहद-ए-मुसलसल के वास्ते मौजों की तरह सीना-ए-तूफ़ाँ में ढल गए जब भी कोई फ़रेब दिया अहल-ए-दहर ने हम इक नज़र-शनास कोई चाल चल गए हावी हुए फ़साने हक़ीक़त पे इस तरह तारीख़ ज़िंदगी के हवाले बदल गए हम ने लचक न खाई ज़माने की ज़र्ब से गो हादसात-ए-दहर की रौ में कुचल गए 'नूरी' कभी जो यास ने टोका हमें कहीं हम दामन-ए-हयात पकड़ कर मचल गए