मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो अश्क की तुफ़्त से गो जल न जले ख़ुश्क तो हो पाक करते हुए गर अश्क मिरे दामन का नाला-ए-गर्म से आँचल न जले ख़ुश्क तो हो नमी-ए-अश्क के बाइस जो मिरी आह से रात ज़ेर-ए-रुख़ तकिया-ए-मख़मल न जले ख़ुश्क तो हो मेहर-वश हुस्न की गर्मी से तिरे वक़्त-ए-अरक़ तन पे गर नीमा-ए-मलमल न जले ख़ुश्क तो हो साक़िया मौसम-ए-गुल बे-मय-ओ-मीना जो मिरी आह की बर्क़ से बादल न जले ख़ुश्क तो हो शोला-रू नित की सवारी में सबब गर्मी के ज़ेर-ए-राँ गो तिरे कोतल न जले ख़ुश्क तो हो हो अगर ये दिल-ए-सोज़ाँ तिरे क़ुलियाँ की चिलम आब-ए-नय से जो ये नर्सल न जले ख़ुश्क तो हो हाए ऐ आतिश-ए-दिल आब से गर्मी से जला चश्म-ए-तर की मिरी छागल न जले ख़ुश्क तो हो तिफ़्ल बद-ख़ू है मिरा अश्क, ख़ुदाया इस की गो ब-ख़िर्मन हुई कोंपल न जले ख़ुश्क तो हो ग़र्क़ है अश्क में घर तुझ से अब ऐ नाला-ए-गर्म गो मिरे सुख का ये मंडल न जले ख़ुश्क तो हो अश्क से ख़ामा रहे जो मिरे बस में न 'बक़ा' गो तब-ए-तन से ये बब्बल न जले ख़ुश्क तो हो