हरीम-ए-दिल में ठहर या सरा-ए-जान में रुक ये सब मकान हैं तेरे किसी मकान में रुक अभी मैं जोड़ रहा हूँ यक़ीन का प्याला तू ऐसा कर कि अभी कासा-ए-गुमान में रुक मैं तुझ को बाँध लूँ अपनी ग़ज़ल के शेरों में ख़याल-ए-यार ज़रा देर मेरे ध्यान में रुक बहुत सी क़ौस-ए-क़ुज़ह बन रही हैं आँखों में ऐ हफ़्त-रंग परी मेरी दास्तान में रुक मैं अपने शेरों का मेआर कुछ बुलंद करूँ मिरे हुरूफ़ में ज़म हो मिरी ज़बान में रुक