दूदमान-ए-दर्द की शादी हैं हम ख़ानदान-ए-ग़म की आबादी हैं हम अपनी शूमी से हुई शादी ग़मी शायद आबादी की बर्बादी हैं हम अपने आब-ए-चश्म से सरसब्ज़ हैं ज़ेब-ए-दश्त-ओ-ज़ीनत-ए-वादी हैं हम दरमियान-ए-ज़िंदगी-ओ-मर्ग हैं क़ाबिल-ए-सैद ओ न सय्यादी हैं हम ज़ख़्म-हा-ए-हिज्र में क्या क्या सहे कुश्तगान-ए-तेग़-ए-फ़ौलादी हैं हम बंदा-ए-पीरेम या-रब अज़ अज़ाब मूरिद-ए-अल्ताफ़-ए-आज़ादी हैं हम हम नहीं कहते मुक़ल्लिद हैं तिरे तेरे दर के कल्ब-ए-क़िल्लादी हैं हम दाद कर ऐ दाद-गर उश्शाक़-कुश तेरे आगे तुझ से फ़रियादी हैं हम ख़ूँ-बहा माशूक़ से लेते नहीं आशिक़-ए-इंसाफ़-ए-बेदादी हैं हम दुख़्तर-ए-रज़ को कोई हम से कहे तेरे तो हक़दार दामादी हैं हम हम गुनहगार-ए-जनाब-ए-इश्क़ हैं अब्द-ए-उब्बादी न आैरादी हैं हम ऐ अज़ीज़ाँ तर्क-ए-इश्क़-ए-हुस्न में संग पर जूँ नक़्श-ए-बहज़ादी हैं हम ला-वलद कहते हैं हम को ला-वलद शेर से अज़-बस-कि औलादी हैं हम आक़िबत ख़ाकी हैं ख़ाकी होंगे ने आतिशी-ओ-आही-ओ-बादी हैं हम फ़त्ह-बाग़ी ने नसर-पूरी हैं बल्कि सिंध में भी हैदराबादी हैं हम क्या कहें क्या थे कहाँ से आए हैं मिस्ल-ए-मज़मून-ए-नौ ईरादी हैं हम फिर भी वो ईराद करने सकता है जिस के अव्वल बार ईजादी हैं हम मस्त-ए-अहमद से 'मातम' हैं शकर* ने सुमूदी क़ौम ने आदी हैं हम