हरीम-ए-दिल में उतरती हैं आयतें उस की लहू भी करने लगा है तिलावतें उस की क़रीब था तो रग-ए-जाँ से भी क़रीब रहा बिछड़ के ता-ब-फ़लक हैं मसाफ़तें उस की हुई है शाख़-ए-दिल-ओ-जाँ पे ख़्वाहिशों की नुमू लहू के फूल खिलाएँगी क़ुर्बतें उस की इसी उमीद पे ख़्वाबों की फ़स्ल बोई है कि किश्त-ए-दिल में उगेंगी बशारतें उस की ख़याल रंग हुआ चाँदनी शफ़क़ ख़ुशबू हज़ार रंग में देखूँ मैं सूरतें उस की नुमू-पज़ीर हूँ मुझ को न छोड़ ऐ धरती मिरी जड़ों को अभी हैं ज़रूरतें उस की लहू तो जम गया आँखों की पुतलियों में 'शकेब' दिखाएँ अक्स भला क्या बसारतें उस की