हरीम-ए-नाज़ कहाँ और सर-ए-नियाज़ कहाँ कहाँ का सज्दा किसे होश है नमाज़ कहाँ मुझे ख़बर ही नहीं है हरीम-ए-नाज़ कहाँ नियाज़-मंद कहाँ और बे-नियाज़ कहाँ पड़ी है क्या उसे हसरत ज़दों में आने की ये मेरी बज़्म कहाँ और वो महव-ए-नाज़ कहाँ ये माना हुस्न-ए-हक़ीक़त अयाँ मजाज़ में है मगर वो जल्वा है ऐ चश्म-ए-इम्तियाज़ कहाँ इलाज किस का करेगा ये पूछता क्या है बताएँ क्या तुझे है दर्द चारासाज़ कहाँ कभी तो मिलती थी हिज्र-ओ-विसाल में लज़्ज़त मगर बुझी हुई दिल में वो सोज़-ओ-साज़ कहाँ दुआएँ माँगता है शैख़ क्यूँ मआ'ज़-अल्लाह ख़ुदा का नाम ले तौबा का दर है बाज़ कहाँ बड़े मज़े से गुज़रती है बादा-ख़्वारों की ब-जुज़ शराब ख़याल-ए-शब-ए-दराज़ कहाँ मिला वो बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में मज़ा ऐ 'शौक़' जुनून-ओ-इश्क़ में बाक़ी है इम्तियाज़ कहाँ