मैं देख भी न सका मेरे गिर्द क्या गया था कि जिस मक़ाम पे मैं था वहाँ उजाला था दुरुस्त है कि वो जंगल की आग थी लेकिन वहीं क़रीब ही दरिया भी इक गुज़रता था तुम आ गए तो चमकने लगी हैं दीवारें अभी अभी तो यहाँ पर बड़ा अँधेरा था लबों पे ख़ैर तबस्सुम बिखर बिखर ही गया ये और बात कि हँसने को दिल तरसता था सुना है लोग बहुत से मिले थे रस्ते में मिरी नज़र से तो बस एक शख़्स गुज़रा था उलझ पड़ी थी मुक़द्दर से आरज़ू मेरी दम-ए-फ़िराक़ उसे रोकना भी चाहा था महक रहा है चमन की तरह वो आईना कि जिस में तू ने कभी अपना रूप देखा था घटा उठी है तो फिर याद आ गया 'अनवर' अजीब शख़्स था अक्सर उदास रहता था