हरीम-ए-शाह में देखी न ख़ानक़ाह में है जो शान-ए-बंदा-नवाज़ी तिरी निगाह में है निगाह जब से तिरे हुस्न की पनाह में है हर इक मक़ाम-ए-मोहब्बत मिरी निगाह में है ये बुत-कदे ये हरम जिस की जल्वा-गाह में है वो मेरे साथ अज़ल से जुनूँ की राह में है ये उन का दर है यहाँ सर उठा के कौन चले यहाँ पे सर ही नहीं दिल भी सज्दा-गाह में है मेरी जबीं की तरफ़ झुक रहे हैं कौन-ओ-मकाँ ये किस का नक़्श-ए-क़दम आज सज्दा-गाह में है तिरे करम ने जो रुत्बा अता किया है मुझे ये मर्तबा न गदा में न बादशाह में है न आया होश उसे जिस पे पड़ गई इक बार ये कैसी मस्ती न जाने तिरी निगाह में है तिरे इ'ताब से ये राज़ खुल गया है सनम तिरा करम भी यहाँ पर्दा-ए-गुनाह में है तिरे जमाल का सदक़ा है ऐ मिरे जानाँ ये रौशनी भी अभी तक जो मेहर-ओ-माह में है गुनाहगार-ए-मोहब्बत पे ये अता तेरी तिरे करम की तजल्ली मिरे गुनाह में है बता रही है 'फ़ना' शान-ए-बे-नियाज़ाना अदा-ए-इश्क़ भी कुछ हुस्न-ए-कजकुलाह में है