ख़्वाब-ए-शब-ए-पुर-कैफ़ की ता'बीर तो देगा कुछ और नहीं अपनी वो तस्वीर तो देगा जाते हुए यक बार पलट कर मिरी जानिब वो मेरी मुलाक़ात को तौक़ीर तो देगा अंगड़ाइयों के साथ वो गेसू का नज़ारा ज़ुल्फ़ों की मिरे पाँव में ज़ंजीर तो देगा मक़्सूद उसे क़त्ल है तो देखना इक दिन हाथों में मिरे दोस्त के शमशीर तो देगा खो जाए न ज़ुल्मत में कहीं ज़ीस्त ये मेरी वो राह-ए-वफ़ा में मुझे तनवीर तो देगा इंकार-ए-मोहब्बत पे भी 'रहबर' को यक़ीं है वो अन-कही हर बात की तफ़्सीर तो देगा