हँसी गुलों में सितारों में रौशनी न मिली मिले न तुम तो कहीं भी हमें ख़ुशी न मिली न चाँद में न शफ़क़ में न लाला-ओ-गुल में जो आप में है कहीं भी वो दिलकशी न मिली निगाह लुत्फ़ की है मुंतज़िर मिरी शब-ए-ग़म सितारे डूब चले और रौशनी न मिली हमीं को सौंप दिए कुल जहाँ के रंज-ओ-अलम किसी में और हमारी सी दिल-दही न मिली निगाह-ए-दोस्त ने बख़्शी जो दिल को मद-होशी शराब-ओ-जाम से हम को वो बे-ख़ुदी न मिली हर इक नशात में पिन्हाँ मिला नशात का ग़म जो ऐश से हो बसर ऐसी ज़िंदगी न मिली मिरे ख़याल में हैं ये तजल्लियाँ किस की अँधेरी रात में भी मुझ को तीरगी न मिली वही फ़ज़ा वही गुलशन वही हवा है मगर मिली जो गुल को वो ख़ारों को ज़िंदगी न मिली गिला करेंगे न अब मेरे बा'द के रहरव कि उन को राह-ए-मोहब्बत में रौशनी न मिली हज़ार बार हुआ ख़ून-ए-आरज़ू लेकिन कभी किसी को मिरी आँख में नमी न मिली जो छेड़ती मिरे बेताब दिल के तारों को किसी भी साज़ में दर्शन वो नग़्मगी न मिली