इस राह में आते हैं बयाबाँ भी चमन भी कहते हैं जिसे ज़ीस्त शबिस्ताँ भी है रन भी क्या हो गया इंसान का वो शौक़-ए-शहादत वीरान नज़र आते हैं अब दार-ओ-रसन भी बुझ जाएगी मिल-जुल के अगर प्यास बुझाओ गंगा ही के नज़दीक तो है रूद-ए-जमन भी अब लाला-ब-दामाँ न कोई चाक-गरेबाँ वीरान चमन ही नहीं सुनसान है बन भी इक हम ही नहीं आबला-पा दश्त-ओ-दमन में आते हैं नज़र ख़ाक-बसर लाला-बदन भी ख़ाली नहीं अब दामन-ए-हसरत मिरा 'दर्शन' हम-राह-ए-वफ़ा मुझ को मिला इश्क़-ए-वतन भी