हँसी में टाल रहे हो तुम उस के रोने को न देखता हो वो होने से पहले होने को सलाम भूक को उन की करो जिन्हों ने कभी बचाए रक्खा था थोड़ा अनाज बोने को दिए गए हैं ख़ज़ाने उन्ही को अहद-ब-अहद रहा था कुछ भी नहीं जिन के पास खोने को ग़लत नहीं कि लगाती हैं पार मौजें भी जो जानती हैं फ़क़त डूबने डुबोने को बिखरना ये है कि मायूस लौट जाती है जो रात आती है मुझ में मुझे समोने को जो आज देखो तो बैठे हैं नील-कंठ बने गए थे हम भी समुंदर कभी बिलोने को पता चला कि ये आँखें मिली हैं उस के लिए शब-ए-फ़िराक़ के गुल रात भर पिरोने को कुछ आँसुओं से ही निकले तो निकले काम कोई वो दाग़ हूँ कि समुंदर भी कम हैं धोने को