ये किस लिए है तू इतना उदास दरवाज़े पहन लिया है जो काला लिबास दरवाज़े तू शाम-रंग हुआ जा रहा है सुब्ह से क्यूँ झलकती है तिरी सूरत से यास दरवाज़े निहारते हो ये किस किस को नीम-वा हो कर पराए देस में कैसी ये आस दरवाज़े हिनाई हाथ के वो लम्स छिन गए जिन से बने हुए हैं सरापा सिपास दरवाज़े मकीं मकाँ में न होगा तो फिर कहाँ होगा यहीं कहीं है तिरे आस-पास दरवाज़े लिबास और है लेकिन मैं कोई और नहीं मुझे तू भूल गया रू-शनास दरवाज़े मुझे भी हैरत-ओ-'हसरत' ने बुत बना डाला तुझे भी ज़िंदगी आई न रास दरवाज़े