हँसी उन की गुल और चमन जानते हैं ये लब मुस्कुराने का फ़न जानते हैं नए लोग हो तुम नई बात जानो मिरा हाल अहल-ए-कुहन जानते हैं मुबारक हो तुम को हिसार-ए-ख़मोशी ज़बाँ वाले तर्ज़-ए-सुख़न जानते हैं लहू के जो क़तरे बहाए हैं मैं ने मिरे जिस्म के पैरहन जानते हैं तुम ही साहब-ए-सल्तनत तो नहीं हो हुकूमत के हम भी चलन जानते हैं शब-ओ-रोज़ मेरे गुज़रते हैं कैसे 'असद' ये तो अहल-ए-वतन जानते हैं