हासिल-ए-फ़न है बस कलाम की दाद वर्ना मिलती है सब को नाम की दाद किस क़दर बे-रुख़ी से मिलता है दुश्मन-ए-जाँ तिरे सलाम की दाद जुर्म ग़ुर्बत पे जा के लगता है वैसे बनती है इस निज़ाम की दाद ख़ूबसूरत है काएनात बहुत ख़ालिक़-ए-हुस्न-ए-इंतिज़ाम की दाद इश्क़ मिलता है हिज्र के ही एवज़ ऐ दुकाँ-दार तेरे दाम की दाद मय-कदे से निकलते मिलती है होश वालों को मेरे जाम की दाद आप ने नक़्स तो निकाला नहीं आप की दाद कब है काम की दाद सहती रहती हूँ वहशतें 'मरियम' सुब्ह मिलती है मुझ को शाम की दाद