हसीन ख़्वाब के नक़्श-ओ-निगार क्यों टूटे ख़िलाफ़-ए-बा'इस-ए-ता'बीर थे सो यूँ टूटे मैं इस लिए भी तिरे सेहर में अभी तक हूँ मैं चाहता ही नहीं हूँ तिरा फ़ुसूँ टूटे मैं हार जाऊँ मगर जीत छीन लूँ तुझ से के इस मक़ाम पे आ कर मिरा जुनूँ टूटे जहान-भर में दिखाई दे वाहिमा मेरा गिरे जो ख़्वाब कभी आँख से तो यूँ टूटे शदीद शोर-ए-फ़ुग़ाँ चार-सू सुनाई दे सुकूत का जो मिरे दरमियाँ सुतूँ टूटे कभी रखा ही नहीं दिल को हाथ पर मैं ने कभी गिरा ही नहीं दिल तो फिर ये क्यों टूटे उसे शिकस्त नहीं ज़र्फ़ तू समझ उस का वो तेरे सामने हो कर जो सर-निगूँ टूटे