भले सुकूत में टूटे या कू-ब-कू टूटे मैं चाहता हूँ कि अंदर की हाओ-हू टूटे तुम्हारी ख़ाक से ता'मीर क्या नहीं होता मिरे वजूद को पैकर मिले जो तू टूटे मैं चाहता हूँ तुझे देख कर 'इबादत हो मैं चाहता हूँ तुझे देख कर वुज़ू टूटे ये रात मुश्क-फ़शाँ और नूर-अफ़शाँ हो कभी अगर जो मिरा ख़्वाब-ए-रंग-ओ-बू टूटे कभी तो ख़्वाब-ए-परेशाँ भी महव-ए-ग़फ़लत हो कभी तो फ़िक्र ओ तरद्दुद की जुस्तुजू टूटे दिखाई देगी हमें रू-ब-रू हक़ीक़त फिर अगर ये वहम की मूरत जो चार-सू टूटे