हसीन रुख़ पे अभी तुम नक़ाब रहने दो न खोलो बंद ग़ज़ल की किताब रहने दो उठूँगा देखना इक दिन मैं आँधियों की तरह अभी करो न सवाल-ओ-जवाब रहने दो हम अपना फ़र्ज़ किसी रोज़ भूल बैठें ना हमारे काँधों पे कुँबे का दाब रहने दो हर एक चीज़ की मुझ में तमीज़ है भाई तुम अपने पास अज़ाब-ओ-सवाब रहने दो मैं अपनी प्यास को सहरा-नवर्द कर दूँगा मिटा दो सारे समुंदर सराब रहने दो तुम्हारे वास्ते साया अज़ाब है 'आतिश' तुम अपने सर पे खड़ा आफ़्ताब रहने दो