हसीनों के गले से लगती है ज़ंजीर सोने की नज़र आती है क्या चमकी हुई तक़दीर सोने की न दिल आता है क़ाबू में न नींद आती है आँखों में शब-ए-फ़ुर्क़त में क्यूँ कर बन पड़े तदबीर सोने की यहाँ बेदारियों से ख़ून-ए-दिल आँखों में आता है गुलाबी करती है आँखों को वाँ तासीर सोने की बहुत बेचैन हूँ नींद आ रही है रात जाती है ख़ुदा के वास्ते जल्द अब करो तदबीर सोने की ये ज़र्दा चीज़ है जो हर जगह है बाइ'स-ए-शौकत सुनी है आलम-ए-बाला में भी ता'मीर सोने की ज़रूरत क्या है रुकने की मिरे दिल से निकलता रह हवस मुझ को नहीं ऐ नाला-ए-शब-गीर सोने की छपर-खट याँ जो सोने की बनाई इस से क्या हासिल करो ऐ ग़ाफ़िलो कुछ क़ब्र में तदबीर सोने की