दिल में अपने नहीं कोई जुज़-यार लैसा-फ़िद्दार-ए-ग़ैरहू दय्यार कुफ़्र ओ दीं से नहीं कुछ आप को बहस सर-ए-तस्बीह ओ गर्दन-ए-ज़ुन्नार दाग़-ए-अश्क आस्तीं से उड़ते हैं मुफ़्त जाती है हाथ से ये बहार हम वो आफ़त-ए-तलब हैं है जिन को ज़ख़्म-ए-शमशीर मरहम-ए-ज़ंगार याद में किस की रात रोया हूँ ग़र्क़-ए-ख़ूँ है हनूज़ जेब-ओ-कनार आह क्या कीजे ज़ुल्फ़ ओ रुख़ उस का चित चढ़ा ही रहे है लैल ओ नहार नासेहा तर्क कीजे किस किस का जीते-जी को तो सब कुछ है दरकार इश्क़-बाज़ी को क्या करेगा तू गो कि छोड़ा मैं इक शराब ओ क़िमार हम ने देखा है दाग़-ए-दिल 'क़ाएम' वक़िना रब्बना अज़ाबन्नार