हसीनों के सितम को मेहरबानी कौन कहता है अदावत को मोहब्बत की निशानी कौन कहता है ये है इक वाक़ई तफ़्सील मेरी आप-बीती की बयान-ए-दर्द-ए-दिल को इक कहानी कौन कहता है यहाँ हर-दम नए जल्वे यहाँ हर-दम नए मंज़र ये दुनिया है नई इस को पुरानी कौन कहता है तुझे जिस का नशा हर-दम लिए फिरता है जन्नत में बता ऐ शैख़ उस कौसर को पानी कौन कहता है तरीक़ा ये भी है इक इम्तिहान-ए-जज़्बा-ए-दिल का तुम्हारी बे-रुख़ी को बद-गुमानी कौन कहता है बला है क़हर है आफ़त है फ़ित्ना है क़यामत का हसीनों की जवानी को जवानी कौन कहता है फ़ना हो कर भी हासिल है वही रंग-ए-बक़ा उस का हमारी हस्ती-ए-फ़ानी को फ़ानी कौन कहता है हज़ारों रंज इस में 'अर्श' लाखों कुल्फ़तें इस में मोहब्बत को सुरूद-ए-ज़िंदगानी कौन कहता है