हसरत-ए-लज़्ज़त-ए-दीदार लिए फिरती है दर-ब-दर कूचा-ओ-बाज़ार लिए फिरती है फ़ख़्र से बाद-ए-सबा सहन-ए-चमन में ऐ दोस्त कुछ तिरी शोख़ी-ए-रफ़्तार लिए फिरती है जान-ओ-दिल होश-ओ-ख़िरद और मताअ'-ए-ईमाँ क्या कुछ इक नर्गिस-ए-बीमार लिए फिरती है बुलबुल-ए-नग़्मा-सरा को भी मिले बार कि वो नज़्र को शोख़ी-ए-गुफ़्तार लिए फिरती है तेरी आवाज़ की लय नक़्श-ए-कफ़-ए-पा की कशिश क़ैद में नग़्मा ओ गुलज़ार लिए फिरती है ऐ जफ़ा-केश तिरी कम-निगही के सदक़े कितने रुस्वा सर-ए-बाज़ार लिए फिरती है इन दिनों जू-ए-चमन अक्स-ए-हुजूम-ए-गुल से कुछ हदीस-ए-लब-ओ-रुख़्सार लिए फिरती है दोस्तो को तिरी बेगाना-वशी ऐ ज़ालिम किस क़दर जान से बेज़ार लिए फिरती है आज-कल उन की निगाहें जो फिरी हैं 'नक़वी' हर नज़र हाथ में तलवार लिए फिरती है