हसरत यही दिल में ले चले हम तुझ को न लगा सके गले हम निकले हैं वतन से मुँह अँधेरे मा'लूम नहीं कहाँ चले हम हर हाल रहे तुझी से मंसूब ऐ दोस्त बुरे थे या भले हम हाइल थे जो अपने रास्ते में तय कर न सके वो मरहले हम 'शफ़क़त' ब-हुजूम-ए-यास-ओ-हिरमाँ देखा किए दिल के हौसले हम