आने वाले शे'र पे राय बारी बारी बैठेगी अब कि जो भी नज़्म कहूँगा ज़ेहन पे सारी बैठेगी उस के लिए पोशाक बनाऊँगा मैं अपने हाथों से रंग सपेदी बीच में होगा सुर्ख़ कनारी बैठेगी कम-गो हैं और अपनी आदत अपनी फ़िक्र पे भारी है वर्ना जब भी बात करेंगे धाक हमारी बैठेगी अच्छे यारों की सोहबत में रहना अच्छा लगता है लोग बुरे होंगे जब सारे शर बाज़ारी बैठेगी धीरे चलना थामे रहना फ़िक्र-ए-सुबुक-रफ़्तारी को रस्ते में इक मोड़ आएगा और सवारी बैठेगी दिल की ज़मीं पर हम ने इक कोना भी ख़ाली छोड़ा है शाम को वापस आ कर जिस में याद तुम्हारी बैठेगी शे'र की दुनिया से मैं बाहर निकलूँ भी तो क्यूँ निकलूँ नश्शा जब उतरेगा मेरा मेरी ख़ुमारी बैठेगी रात को जो भी ख़्वाब में देखा सुब्ह वही ता'बीर किया अगले रोज़ भी जागना होगा नींद बिचारी बैठेगी ज़ीस्त हमारी थक जाएगी हिज्र के लम्बे रस्ते पर और ज़रा सुस्ताने को भी ये दुखियारी बैठेगी मेरे बचाओ की तो मेरे यार ही कुछ तदबीर करें आँख से ज़र्ब लगी है दिल पर ज़र्ब तो कारी बैठेगी