ज़ुल्म से दरगुज़र नहीं आता हाँ मुझे ये हुनर नहीं आता जब तलक मेरे सर नहीं आता उन का इल्ज़ाम बर नहीं आता तब फ़लक पर क़मर नहीं आता यार जब बाम पर नहीं आता फ़र्क़-ए-ज़ेर-ओ-ज़बर नहीं आता मुझ को कुछ भी नज़र नहीं आता हिजरतों की अँधेरी राहों में चलता जाता हूँ घर नहीं आता चश्म-ए-नर्गिस उदास रहती है अब कोई दीदा-वर नहीं आता बात मैं साफ़ साफ़ करता हूँ मुझ को ये गर मगर नहीं आता ज़िंदगी इतनी देर मोहलत दे जब तलक नामा-बर नहीं आता जाने कब से हूँ मुंतज़िर उस का पर मिरा मुंतज़र नहीं आता इश्क़ देता है ख़ुद ख़बर अपनी ले के क़ासिद ख़बर नहीं आता उम्र भी लौट कर नहीं आती वक़्त भी लौट कर नहीं आता फिर न मिल पाऊँगा ज़माने से याद ख़ुद को अगर नहीं आता रौशनी से बने जो होते हैं उन का साया नज़र नहीं आता वक़्त वो मेहमान है 'हस्सान' जो कभी लौट कर नहीं आता