हस्ती-ए-फ़ानी का मातम क्या करें हँस के भी इस ग़म को मुबहम क्या करें बन के ख़ुशबू ज़ात में तुम भर गए ख़ुद को ख़ुद में इस से भी कम क्या करें उस की सब नादानियाँ प्यारी लगें इतना प्यारा है वो हमदम क्या करें साँस की लरज़न भी सरगम हो गई आशिक़ी की धुन को मद्धम क्या करें फ़ाएदा नुक़सान सब तुम ही गिनो हम तो अब तुम हो गए ग़म क्या करें