हस्ती को अपनी इश्क़ के शायाँ बनाइए उन की नज़र-नज़र को रग-ए-जाँ बनाइए रूदाद-ए-दर्द-ए-इश्क़ से हैराँ बनाइए उन को भी आज अश्क-ब-दामाँ बनाइए दरमाँ को दर्द दर्द को दरमाँ बनाइए सहर-ए-नज़र से इश्क़ को हैराँ बनाइए महरूम रह सके न कोई सीना इश्क़ से फूलों को हँस के चाक-गरेबाँ बनाइए जो कुछ मता-ए-दिल थी शब-ए-ग़म ने लूट ली आँसू कहाँ कि ज़ीनत-ए-मिज़्गाँ बनाइए ये मुश्किलें ही अस्ल में राज़-ए-हयात हैं दुश्वारियों को आप न आसाँ बनाइए कलियों को ये लतीफ़ तबस्सुम कहाँ नसीब बस अब न चश्म-ए-शौक़ को हैराँ बनाइए कहती हैं पा-ए-यार पे सज्दों की अज़्मतें इस कुफ़्र ही को हासिल-ए-ईमाँ बनाइए महदूद-ए-औज-ए-चर्ख़ न रखिए कमाल-ए-हुस्न ज़र्रों को मेहर-ओ-माह बदामाँ बनाइए ख़ुद को जो पा गया है वो उन को भी पा गया हस्ती को अपनी मंज़िल-ए-जानाँ बनाइए 'नय्यर' ब-हद्द-ए-दश्त गुलिस्ताँ बना तो क्या अपनी नज़र नज़र को गुलिस्ताँ बनाइए