हस्ती कोई ऐसी भी है इंसाँ के सिवा और मज़हब का ख़ुदा और है मतलब का ख़ुदा और हर जादा-ए-मंज़िल में है सज्दे की अदा और मा'बद की फ़ज़ा और है मक़्तल की फ़ज़ा और फिर ठहर गया क़ाफ़िला-ए-दर्द सुना है शायद कोई रस्ते में मिरी तरह गिरा और इक जुरआ'-ए-आख़िर की कमी रह गई आख़िर जितनी वो पिलाते गए आँखों ने कहा और मिम्बर से बहुत फ़स्ल है मैदान-ए-अमल का तक़दीर के मर्द और हैं मर्दान-ए-विग़ा और अल्लाह गिला कर के मैं पछताया हूँ क्या क्या जब ख़त्म हुई बात कहीं उस ने कहा और कितने भी हों कुश्ते मरज़-ए-हिर्स-ओ-हवा के बीमार की मौत और है मर्ग-ए-शोहदा और क्या ज़ेर-ए-लब ऐ दोस्त है इज़हार-ए-जसारत हक़ हो कि वो नाहक़ हो ज़रा लय तो बढ़ा और ये वहम सा होता है मुझे देख के इन को सीरत का ख़ुदा और है सूरत का ख़ुदा और दौलत का तो पहले ही गुनहगार था मुनइ'म दौलत की मोहब्बत ने गुनहगार किया और ये दौर जो ऐ 'नज्म' है उर्दू का मुख़ालिफ़ इस दौर में उर्दू की हुई नश्व-ओ-नुमा और