जिस को सौ आसानियाँ थीं वो भी कुछ मुश्किल में है मैं समझता हूँ तुम्हारा दिल भी मेरे दिल में है जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत को मुसलसल देख कर पूछता फिरता हूँ दुनिया कौन सी मंज़िल में है ज़ब्ह करता है मुझे रोता है मेरे हाल पर मेरी फ़ितरत भी ख़ुदा रक्खे मिरे क़ातिल में है बंदगी का हक़ बताता हूँ ख़ुदावंदी को मैं हाथ फैलाने का धब्बा दामन-ए-साइल में है याद कर ज़ालिम मिरे दिल का तड़पना याद कर हैरत-ए-जल्वा का सन्नाटा तिरी महफ़िल में है सई-ए-हासिल में भी इक लज़्ज़त है दो दिन चार दिन पूछिए हम से मज़ा जो सई-ए-ला-हासिल में है मर्हबा ज़ौक़-ए-असीरी क़ुदरत-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र दहने बाएँ जिस को देखा क़ैद आब-ओ-गिल में है ये दुआ माँगी मिरे दिल में न हो कुछ इंक़लाब इंक़िलाब-ए-दहर शामिल इंक़लाब-ए-दिल में है दूसरी दुनिया से क्यों आए पयाम-ए-ज़िंदगी रूह अपनी कोशिशें आज़ादी-ए-कामिल में है 'नज्म' ये ख़ंदा-जबीनी हर बला-ए-इश्क़ पर किस तबस्सुम का ख़ज़ाना मेरे आब-ओ-गिल में है