हस्ती-ए-नीस्त-नुमा दीदा-ए-हैराँ समझा तुझ को दौरान-ए-बक़ा ख़्वाब-ए-परेशाँ समझा कुफ़्र-ओ-ईमाँ का अजब रंग है नैरंगी में ये वो नैरंग है काफ़िर न मुसलमाँ समझा लैली-ए-शोख़-अदा ऐन-ए-तसव्वुर जो बनी क़ैस को दामन-ए-सहरा में हुदा-ख़्वाँ समझा वुसअ'त-ए-मशरब-ए-रिंदाँ का नहीं है महरम ज़ाहिद-ए-सादा हमें बे-सर-ओ-सामाँ समझा रंग-ए-फ़ितरत ने बनाया है जो मजज़ूब-ए-क़िमाश मंज़र-ए-आलम-ए-नैरंग-ए-बयाबाँ समझा सालिक-ए-राह-ए-तलब आप हुए राह-ए-ग़लत जादा-ए-मंज़िल-ए-दुशवार को आसाँ समझा जाम-ए-सरशार से मसरूर रहेगा 'साक़ी' तेरा मस्ताना भी ऐ साक़ी-ए-दौराँ समझा