हाथ क्यूँ थकने लगे हैं क़ातिलों से पूछना के भी क्यूँ बोलती हैं गर्दनों से पूछना तुम ने तो बस हाल ही पूछा था मुझ बीमार का आ गए हैं क्यूँ उमँड कर आँसुओं से पूछना जूझते रहने का है सैलाब से मफ़्हूम क्या कश्तियों को खेने वाले माँझियों से पूछना भूके बच्चे के लिए क्या शय है ममता की तड़प दूध से महरूम माँ की छातियों से पूछना धूप में पतझड़ की उन का पेड़ से रिश्ता है क्या सूखे डंठल जिन के हैं उन पत्तियों से पूछना गूँजती है इक अकेले हंस की आवाज़ क्यूँ कल मिले थे जिन पे हम इन साहिलों से पूछना याद है अब तक मुझे 'अतहर' कि मेरा बार बार उन के नक़्श-ए-पा कहाँ हैं रास्तों से पूछना