ज़िंदगी सिलसिला-ए-वहम-ओ-गुमाँ है यारो दिल-ए-बेताब को तस्कीन कहाँ है यारो वही सय्याद की घातें हैं वही कुंज-ए-क़फ़स फ़स्ल-ए-गुल रेहन-ए-ग़म-ए-जौर-ए-ख़िज़ाँ है यारो वही अफ़्कार की उलझन वही माहौल का जब्र ज़ेहन पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर-ए-गिराँ है यारो वही हसरत वही लब और वही मोहर-ए-सुकूत शौक़ को जुरअत-ए-इज़हार कहाँ है यारो अज़्म की रह भी वही राह में काँटे भी वही दूर कोसों मरी मंज़िल का निशाँ है यारो बेवफ़ाई का ख़ुदारा मुझे इल्ज़ाम न दो तुम पे हाल-ए-दिल-ए-बेताब अयाँ है यारो काश मैं कह भी सकूँ काश कोई सुन भी सके आह वो राज़ कि जो राज़-ए-निहाँ है यारो मेरे होंटों पे है इक नग़्मा-ए-बे-सौत-ओ-सदा दिल में इक महशर-ए-फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ है यारो इक तग़ाफ़ुल कि जो है वज्ह-ए-परेशानी-ए-दिल एक याद इन की है जो राहत-ए-जाँ है यारो आज साहिल के क़रीं डूबने वाला है 'मजीद' नाख़ुदा को तो पुकारो वो कहाँ है यारो