हाथ उस के न आया दामन-ए-नाज़ इश्क़ को सुनते ही थे दस्त-दराज़ बैत-ए-अबरू है मख़्ज़न-ए-असरार ख़त है चेहरे का शरह-ए-गुलशन-ए-राज़ देख कर चश्म ख़ून-ए-दिल रोना कहीं इफ़शा न हो किसी का राज़ क्यूँ न बदनाम हूँ जहाँ में मैं दिल है बद-ख़्वाह चश्म है ग़म्माज़ एक दिल के लिए ये फ़ौज-कशी इश्वा-ओ-नाज़ ग़म्ज़ा-ओ-अंदाज़ जब बुलाता अयाज़ को महमूद कुछ न कहता सिवाए बंदा-नवाज़ जब तक उस से नियाज़-ए-दिल न कहूँ नहीं पढ़ने का ऐ 'रज़ा' मैं नमाज़