हौसलों से बिखर भी जाता हूँ मैं मिसालों से डर भी जाता हूँ ज़िंदगी का सफ़र भी जारी है शाम होते ही घर भी जाता हूँ ग़ौर से देखता हूँ दुनिया को रास्तों से गुज़र भी जाता हूँ हाँ जहाँ पर सवाल उगते हैं हस्ब-ए-आदत उधर भी जाता हूँ झूट के सच के दरमियान कभी मैं तकल्लुफ़ से मर भी जाता हूँ