फ़क़त मेहनत मशक़्क़त का नतीजा कम निकलता है दुआ जब माँ की शामिल हो तो फिर ज़मज़म निकलता है कहीं पर भी सँभलने की ये मोहलत ही नहीं देता कनार-ए-वक़्त से हर हादसा इक दम निकलता है मोहब्बत के सफ़र में जब कहीं पर मोड़ आ जाए सुना ये है वहीं से हिज्र का मौसम निकलता है सफ़र का मरहला जो हो जहाँ पर लिख दिया जाए उसी मंज़िल पे आ कर ज़िंदगी का दम निकलता है बहुत कमज़ोर होता है कहीं पर ख़ून का रिश्ता कहीं इक काग़ज़ी रिश्ता ही मुस्तहकम निकलता है ये कैसी वादी-ए-ग़ुर्बत से वाबस्ता हुए हम लोग जहाँ सर्दी में सूरज भी बहुत कम-कम निकलता है