हौसला कोई शब-ए-वस्ल निकलने न दिया दर्द-ए-दिल ने मुझे इक दम भी सँभलने न दिया आसमानों को दिला ज़ब्त ने जलने न दिया आतिशीं-नाला मिरे मुँह से निकलने न दिया हम ने दिल सोज़-ए-तप-ए-हिज्र से जलने न दिया साथ आहों के धुआँ मुँह से निकलने न दिया बाग़ियों ने ये किया ज़ुल्म मिसाल-ए-शमशाद नख़्ल-ए-उम्मीद मिरा फूलने फलने न दिया ज़िक्र-ए-गेसू-ए-परेशाँ से परेशाँ रक्खा दिल को मैं ने शब-ए-फ़ुर्क़त में सँभलने न दिया ख़ंजर-ए-नाज़ से मंज़ूर जो था क़त्ल मुझे नीमचा मियान से क़ातिल की निकलने न दिया ऐ मसीहा तप-ए-फ़ुर्क़त भी बला है कोई तेरे बीमार-ए-मोहब्बत को सँभलने न दिया ख़ौफ़-ए-ताराजी-ए-गुलशन का उसे था जो ख़याल नाला बुलबुल ने कभी मुँह से निकलने न दिया लाख फड़का ही किया मैं ने मगर ऐ सय्याद मुर्ग़-ए-दिल को क़फ़स-ए-तन से निकलने न दिया बाज़ी-ए-इश्क़ भला हम से वो क्या ले जाता 'फ़ाख़िर' उस शोख़ का चकमा कोई चलने न दिया