ख़्वाहिश-ए-शर्बत-ए-दीदार करूँ या न न करूँ मैं इलाज-ए-दिल-ए-बीमार करूँ या न करूँ तलब-ए-वस्ल पे इसरार करूँ या न करूँ बोसे ले कर उसे बेज़ार करूँ या न करूँ नाले शब को पस-ए-दीवार करूँ या न करूँ ख़्वाब से यार को बेदार करूँ या न करूँ मुझ से कहते हैं बताओ तो मिरे सर की क़सम मुर्ग़-ए-दिल को मैं गिरफ़्तार करूँ या न करूँ या इलाही मुझे इस में है तरद्दुद कल से दिल ये मैं पेशकश-ए-यार करूँ या न करूँ छीन कर दिल मिरे पहलू से न ले जाए कहीं तर्क मैं उल्फ़त-ए-दिलदार करूँ या न करूँ या-इलाही कहीं असरार न होवें इस में ताइर-ए-दिल मैं गिरफ़्तार करूँ या न करूँ सख़्त मुश्किल मुझे दरपेश हुई है कल से आज इश्क़-ए-बुत-ए-पिंदार करूँ या न करूँ नीचे तलवार के साबित-क़दमी मुश्किल है सर के देने का मैं इक़रार करूँ या न करूँ ख़ौफ़ मुझ को है कि नाज़ुक है तबीअ'त उन की बोसे लेने पे मैं इसरार करूँ या न करूँ पार दिल की न कहीं तीर-ए-नज़र हो जाए आँखें उस शोख़ से मैं चार करूँ या न करूँ आतिश-ए-हिज्र से दिल मेरा जलाया तुम ने मुँह से मैं आह-ए-शरर-बार करूँ या न करूँ मेरे दिल से है ये इक रश्क-ए-ज़ुलेख़ा का सवाल मिस्ल यूसुफ़ के तुझे प्यार करूँ या न करूँ वादा-ए-वस्ल जो उस से ब-क़सम लेता हूँ दिल से कहते हैं मैं इक़रार करूँ या न करूँ आप की राय है क्या हज़रत-ए-मूसा इस में तूर पर ख़्वाहिश-ए-दीदार करूँ या न करूँ क़ब्र में शाना हिला कर वो मिरा कहते हैं ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से मैं बेदार करूँ या न करूँ बेवफ़ा एक तलब करता है मुझ से 'फ़ाख़िर' दिल के देने में मैं इंकार करूँ या न करूँ