उन से मिली निगाह तो मौसम बदल गया दामान-ए-चाक-चाक तमन्ना का सिल गया दिल का शगूफ़ा उस गुल-ए-नाज़ुक से खिल गया देखा ज़रा टटोल के पहलू से दिल गया तूफ़ान इक बला का मिरे आँसुओं में था पिघला न वो कलेजा समुंदर का हिल गया इश्क़-ए-तबाह-हाल ने वो मो'जिज़ा किया बाग़-ए-इरम से ख़ाना-ए-वीरान मिल गया उस संग-दिल ने पाँव से मसली जो शाख़-ए-गुल ऐसा लगा कि दिल का कोई ज़ख़्म छिल गया तू ए'तिबार-ए-ज़ीस्त से आँखें मिला के देख ख़्वाबों के पैरहन में तिरा रूप खिल गया ये कौन है उतार दिया ज़िंदगी से बोझ वो कौन था जो दिल पे मिरे रख के सिल गया उस का ख़याल था कि 'मुनव्वर' के दिल के दाग़ लेकिन अंधेरा दिल से मिरे मुस्तक़िल गया