हवाओं के मुक़ाबिल हूँ चराग़ों की वो महफ़िल हूँ ख़ुदा जाने कहाँ हूँ मैं न बाहर हूँ न शामिल हूँ मिरे काँधे पे वो बिखरे हैं मौज इक वो मैं साहिल हूँ ये चादर सिलवटें तकिया बताते हैं मैं ग़ाफ़िल हूँ मैं जो चाहूँ वो पा लूँ पर अभी ख़ुद ही से ग़ाफ़िल हूँ यहाँ सच बे-सहारा है सहारा दूँ मैं बातिल हूँ उमीदें तुम से रखती हूँ कहो तो कितनी जाहिल हूँ जुआ है ज़िंदगी जैसे जो जीते उस को हासिल हूँ रहे ज़द में जुनूँ जिस के उसी को फिर मैं हासिल हूँ