हवाओं में बिखर जाऊँ By Ghazal << ज़ाहिरन शाद हूँ फ़रहाँ हू... इस हाल में जीते हो तो मर ... >> हवाओं में बिखर जाऊँ तुझे छू कर गुज़र जाऊँ तक़ाज़े मुंतज़िर होंगे मैं कैसे अपने घर जाऊँ उतारूँ क़र्ज़-ए-आईना तुझे देखूँ सँवर जाऊँ सफ़र है तेरी मर्ज़ी पर सदा दे तो ठहर जाऊँ वो अगले मोड़ पे घर है वो मोड़ आए तो घर जाऊँ Share on: