हवस बला की मोहब्बत हमें बला की है कभी बुतों की ख़ुशामद कभी ख़ुदा की है किसी को चाहने वाले यही तो करते हैं बड़ा कमाल किया है अगर वफ़ा की है गुज़र बसर है हमारी फ़क़त क़नाअ'त पर नसीब ने यही दौलत हमें अता की है तमाम रात पड़ी थी गुज़ारने के लिए चुनाँचे ख़त्म सुराही ज़रा ज़रा की है शराब से कोई रग़बत नहीं है मुहतसिबो हकीम ने हमें तज्वीज़ ये दवा की है ज़रा सी देर को आए थे शैख़ इधर लेकिन यहीं जनाब ने मग़रिब यहीं इशा की है तुम्हारा चेहरा-ए-पुर-नूर देखता हूँ तो यक़ीन ही नहीं आता कि जिस्म ख़ाकी है मुझे अज़ीज़ न हो क्यूँ रिजाइयत अपनी ये ग़म-शरीक मिरे दौर-ए-इब्तिला की है 'शुऊर' ख़ुद को ज़हीन आदमी समझते हैं ये सादगी है तो वल्लाह इंतिहा की है