हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में अभी ये मौज है बेगानगी के सहरा में समुंदरों में सितारों की आग फैली है महक रहा है लहू लज़्ज़त-ए-नज़ारा में हवा ने अब्र-ए-बहाराँ से बेवफ़ाई की ख़बर करो किसी आराम-गाह-ए-तन्हा में दिलों के बंद दरीचों से झाँक कर देखो किसी फ़साद की परछाइयाँ हैं दुनिया में फ़रेब था जो मुझे ज़ोम-ए-बे-करानी था उदास हैं मिरे साहिल फ़िराक़-ए-दरिया में मुझे तो एक तिरा हुस्न ही बहुत है मगर तिरे लिए भी बहुत कुछ है ख़्वाब-ए-फ़र्दा में