ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले इस ख़राबे में कहाँ ख़्वाब के आसार मिले उस के लहजे में क़यामत की फ़ुसूँ-कारी थी लोग आवाज़ की लज़्ज़त में गिरफ़्तार मिले उस की आँखों में मोहब्बत के दिये जलते रहें और पिंदार में इंकार की दीवार मिले मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है जिस के मिलने से मिरी ज़ात को इज़हार मिले रूह में रेंगती रहती है गुनह की ख़्वाहिश इस अमरबेल को इक दिन कोई दीवार मिले