हवस की आग बुझी दिल की तिश्नगी है वही सुकून-ए-जाँ से तही मेरी ज़िंदगी है वही दिल-ए-फ़सुर्दा में एहसास ही नहीं बाक़ी जहान-ए-कोहना में वर्ना शगुफ़्तगी है वही जमाल और जुनूँ हो चुके ज़माना-शनास नियाज़-ओ-नाज़ में कहने को सादगी है वही कोई क़ुसूर तो साबित न हो सका लेकिन जो बद-गुमाँ थे उन्हें मुझ से बरहमी है वही वो हर क़दम के असर से है बा-ख़बर फिर भी रह-ए-हयात में इंसाँ की कज-रवी है वही