'हावी' नहीं अफ़्सोस कि महफ़िल से निकाला ज़ालिम ने मगर आह मुझे दिल से निकाला डूबा था मैं तो ऐन समुंदर के मियाने हैरत है कि लाशा मिरा साहिल से निकाला क्या तीर चलाया है चमन में अरे गुलचीं कल साँस जो इक ताइर-ए-बिस्मिल से निकाला मजनूँ ने मोहब्बत में हथेली पे धरा सर लैला ने फ़क़त हाथ न महमिल से निकाला उस के तो मैं अब वहम-ओ-गुमाँ में भी नहीं हूँ मैं ने भी मुकम्मल उसे इस दिल से निकाला