हवा चली है ये कैसी ख़िलाफ़ चारों तरफ़

हवा चली है ये कैसी ख़िलाफ़ चारों तरफ़
है एक सिलसिला-ए-इंहिराफ़ चारों तरफ़

हक़ीक़तों की भी पहचान अब हुई दुश्वार
ख़ज़फ़ ख़ज़फ़ हैं सदफ़ के ख़िलाफ़ चारों तरफ़

इसी तरह है अभी बातिनों में सन्नाटा
है अपनी ज़ात का गो इंकिशाफ़ चारों तरफ़

तू संग-ए-मील की सूरत है नस्ब एक जगह
मैं गर्द-ए-राह हूँ मेरा तवाफ़ चारों तरफ़

है चेहरा चेहरा वही ज़ख़्म-ए-राएगाँ-हुनरी
बिखर गए हैं क़लम के शिगाफ़ चारों तरफ़

हैं रौशनाई-ओ-क़िर्तास-ओ-किल्क भी क्या कुछ
मिले वरक़-ब-वरक़ इख़्तिलाफ़ चारों तरफ़

तू ख़ुद से कट के ज़रा दूसरों में जीना सीख
करेंगे लोग तिरा ए'तिराफ़ चारों तरफ़

रहूँ हिसार-ए-बदन में कि शहर-ए-जाँ को चलूँ
वही तवाफ़ वही एतकाफ़ चारों तरफ़

'फ़ज़ा' मुरव्वजा बहरों में जिद्दतों का ये शौक़
इज़ाफ़े सिमटे तो फैले ज़िहाफ़ चारों तरफ़


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