ख़ुलूस दे के सज़ा-वार नफ़रतों का हुआ न पूछ हश्र जो पिछली रफ़ाक़तों का हुआ हँसे तो पड़ गईं चेहरे पे कुछ ख़राशें और शिकार ख़ंदा-ए-लब किन जराहतों का हुआ कहोगे क्या जो तुम्हारा वो हाल पूछेगा कि पारा-पारा गरेबाँ शिकायतों का हुआ वो ख़ून-ए-दिल ही सही कुछ क़लम से टपका तो चलो नुज़ूल तो हम पर भी रहमतों का हुआ हिसार-ए-हर्फ़-ओ--हुनर तोड़ कर निकल जाऊँ कहाँ पहुँच के ख़याल अपनी वुसअ'तों का हुआ चला था मैं कि नई आगही पे कुछ लिख्खूँ तमाम सिलसिला बरहम इबारतों का हुआ तू एक लफ़्ज़ है मा'नी पे ख़ुद दलालत कर रहा बिखर के जो ख़ूगर वज़ाहतों का हुआ बड़ा हुनर है सलीक़े से बात कहना भी 'फ़ज़ा' के बाद ही इत्माम हुज्जतों का हुआ