हवा का शोर सदा-ए-सहाब मेरे लिए जहान-ए-जब्र का हर इज़्तिराब मेरे लिए सुलगता जाता हूँ मैं और पढ़ता जाता हूँ खुला पड़ा है ज़माने का बाब मेरे लिए मैं मुंतज़िर था जहाँ पर गुलाब खिलने का वहीं परेशाँ थी बू-ए-गुलाब मेरे लिए ये मेरी उम्र की शब ये उड़ी हुई नींदें न कोई ख़्वाब न अफ़्सून-ए-ख़्वाब मेरे लिए तबाह कर दिया अहद-ए-जवाँ की बातों ने शबाब इस के लिए था शराब मेरे लिए जहाँ है नश्शा-ए-ख़्वाब-ए-सहर में खोया हुआ है सर पे आया हुआ आफ़्ताब मेरे लिए रहा है ध्यान में इक जिस्म चाँद सा 'जाफ़र' हुई वहाँ है शब-ए-माहताब मेरे लिए